मनीष पाण्डेय, महासमुंद. नेशनल हाईवे-53 पर महासमुंद से करीब 135 किलोमीटर दूर 150 परिवारों का गांव है। इस छोटे-से गांव में न तो राफेल की फैक्ट्री लगनी है और न ही राफेल से इसे कोई फायदा मिलने वाला है, फिर भी चुनाव में सबसे ज्यादा उछाले जा रहे मुद्दों में से एक राफेल इस गांव की समस्या बन गया है। दरअसल, इस गांव का नाम ही राफेल है। इससे गांव वाले आस-पास के इलाकों में हंसी का पात्र बने हुए हैं।
गांव के लोग दूसरे गांव में जाते हैं तो उन्हें कभी जिज्ञासा भरे ढेरों सवालों से जूझना पड़ता है, तो कभी चुटीले शब्द भी सुनने पड़ते हैं कि कांग्रेस की सरकार आएगी तो गांववालों की जांच कराई जाएगी। गांव का नाम चर्चित है, इसपर गांव वालों को कैसा लगता है, इस सवाल पर बुजुर्गों का कहना है कि चर्चा में आने से उन्हें क्या मिला? कभी प्रधानमंत्री या कांग्रेस अध्यक्ष आते तो उनके गांव को भी फायदा मिलता।
गांव का नाम भले चर्चित हो, लेकिन राजनीति को यह आकर्षित नहीं कर पाया है। सोमवार को प्रचार का आखिरी दिन है। पर गांव वाले बताते हैं कि कोई भी उम्मीदवार यहां प्रचार के लिए नहीं आया। भाजपा के कुछ कार्यकर्ता जरूर आए थे। गांव वाले कहते हैं कि प्रधानमंत्री जो भी बने, हमें तो सिंचाई की सुविधा चाहिए। अभी बारिश के भरोसे खेती होती है। किसान परिवारों को मजदूरी के लिए बाहर जाना पड़ता है।
गांव का नाम राफेल कैसे पड़ा, यह गांव के बड़े-बुजुर्ग भी नहीं जानते। उनका कहना है कि पहले रायपुर जिला था, फिर 1998 में महासमुंद जिला बना, जिसमें 21 साल से यह गांव है। गांव में 35 साल से रह रहीं सुकांति बाग कहती हैं कि गांव की इतनी चर्चा पहले कभी नहीं हुई। महिला पंच सफेद राणा से जब पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट में फिर मामले की सुनवाई होगी तो वे बोलीं कि ये सब हम नहीं समझते, पता नहीं क्यों सब गांव के पीछे पड़े हैं।