भंवर जांगिड़, सूरत (गुजरात) से. सूरत की रिंग रोड। सब-जेल के सामने चौबीसों घंटे खुली रहने वाली चाय की दुकान। रात डेढ़ बजे भी दो सौ-तीन सौ लोगों की भीड़। यहां मिले कॉर्पोरेट कंपनियों के टैक्स लॉयर पंकज कर्नावट। चुनावी मुद्दों की बात की तो बोले-जीएसटी तो कब का फेल हो चुका है। छोटे कारोबारियों को शुरू में जरूर दिक्कत थी। और जो आंदोलन हुआ वो भी कांग्रेस प्रेरित ही था। इसलिए भाजपा का बाल भी बांका नहीं हुआ।
जी हां! जीएसटी के गणित से भी ज्यादा उलझाऊ है दक्षिण गुजरात का मिजाज। सूरत वह शहर है जहां जीएसटी का सबसे ज्यादा विरोध हुआ। इसके बावजूद हुआ क्या? विधानसभा चुनाव में शहर की सभी 12 सीटें भाजपा जीत गई। जो विरोध था, वही वोट बनकर भाजपा को मिल गया। सूरत का दूसरा दिन आरसीटी ग्राउंड में बीता। यहां राजस्थानी युवाओं का कार्यक्रम चल रहा था। कार्यक्रम सांस्कृतिक था, पर मंच राजनीतिक ही था। मंच से चौकीदार को वोट करने की अपील हो रही थी। यहां परप्रांतीय, जो सूरत-नवसारी की 70% आबादी है। वह भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है।
सूरत शहर का नवसारी सीट में बंटवारा परिसीमन में ही हुआ था, यहां दाेनों सीटों के धंधों पर मारवाड़ी और काठियावाड़ी का कब्जा है। सूरत से दर्शना बेन जरदोस और नवसारी से सीआर पाटिल सांसद हैं। यहां कांग्रेस नेता व टेक्सटाइल एसोसिएशन के महामंत्री चंपालाल बोथरा खुद कहते हैं- सूरत-नवसारी सीटों पर कांग्रेस का संगठन है ही नहीं। इसलिए प्रत्याशी का माहौल बन ही नहीं पाता। इसी एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष श्रीकृष्ण बंका जो भाजपा नेता भी हैं, उनका भी रोचक जवाब सुनिए- जीएसटी आंदोलन में नेताओं ने व्यापारियों से कहा था अभी दिक्कत है, फिर आदत पड़ जाएगी, और वास्तव में दो सालों में आदत पड़ ही गई अब कोई जीएसटी की बात नहीं करता। वैसे भी व्यापारी हमेशा सत्ता के साथ ही रहता है।
सूरत में युवक कांग्रेस से जुड़े गौरव श्रीमाली ने बताया- ऐसा नहीं है कि कांग्रेस का यहां जोर नहीं है। पहले टिकट वितरण तो सही हो। सूरत में ही देख लीजिए- 72 कॉलेज हैं। एनएसयूआई ने चार महीने पहले ही 58 जगहों पर एबीवीपी को हराया है। सीनेट के भी 6 इलेक्टेड मेंबर में से 3 हमारे जीते हैं। जिला कांग्रेस से ज्यादा तेज तो युवक-कांग्रेस व एनएसयूआई है, युवा कांग्रेस की ओर बढ़ रहा है। सूरत में भाजपा की दर्शना बेन जरदोस का मुकाबला कांग्रेस के अशोक अधेवड़ा से होगा। वहीं, नवसारी में भाजपा सांसद सीआर पाटिल का मुकाबला कांग्रेस के धर्मेश पटेल से होगा।
तीस सालों से इन दोनों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। मोरारजी देसाई ने जनता पार्टी बना कर कांग्रेस के पैर उखाड़े थे जिसे भाजपा के काशीराम राणा ने वापस जमने ही नहीं दिए। उन्हीं की विरासत सीआर पाटिल संभाले हुए हैं। सूरत और नवसारी की सात-सात विधानसभा सीटों पर भाजपा के विधायक हैं। धर्मेश पटेल कोली-पटेल हैं और यहां कोली-पटेल व सौराष्ट्रीयन पाटीदार मेजोरिटी में हैं। लेकिन पाटीदारों के वोट भी एक जगह हैं, जबकि कोली-पटेल फैले हुए हैं।
अब चलते हैं दक्षिण गुजरात की बारडोली सीट की ओर। अंग्रेजी अखबार के सीनियर जर्नलिस्ट हिमांशु भट्ट के मुताबिक यह सीट मिल्क कॉपरेटिव व शुगर कॉपरेटिव के हाथों में रहती है। इन कॉपरेटिव से 1500 गांवों के लोग सीधे जुड़े हैं। यहां चौधरी और वसावा जाति का वर्चस्व है। कांग्रेस के तुषार चौधरी दो बार सांसद व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, वे मोदी लहर में प्रभूभाई वसावा से हारे थे। ये दोनों कॉपरेटिव संगठन भाजपा ही कंट्रोल कर रही है। हालांकि इस मिथक को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने तुषार चौधरी पर इस बार भी भरोसा जताया है जो इस बार वसावा को चुनौती देते दिख रहे हैं। बारडोली में आने वाली सात विधानसभा सीटों में से छह ग्रामीण क्षेत्र की हैं। इनमें से तीन पर कांग्रेस के विधायक जीते थे। संभवत: कांग्रेस के भरोसे की एक वजह यह भी है।
वलसाड़ की बात करें तो यहां 70% ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र है। कांग्रेस को यहां लोग आज भी इंदिरा के चेहरे से ही पहचानते हैं। कांग्रेस को यह सुनने में जितना अच्छा लगता है, उतना ही बुरा भी लगता है। यहां पार्टी कैडर वोट पड़ते हैं जो भाजपा की जीत को आसान बनाते हैं। इसलिए भाजपा ने मौजूदा सांसद केसी पटेल को इस बार भी टिकट दिया है लेकिन केसी पटेल के छोटे भाई डीसी पटेल की नाराजगी भी है। वे खुद को केसी की जगह दमदार प्रत्याशी मान रहे थे। विधानसभा चुनाव में हार्दिक, अल्पेश व जिग्नेश की तिकड़ी के कारण कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा था इसलिए कांग्रेस ने विधायक जीतू चौधरी पर दांव खेला है। परंतु अल्पेश ने कांग्रेस छोड़ दी तो उसका असर भी देखने को मिलेगा। यहां भी तीन विधानसभाओं पर कांग्रेस का कब्जा है।
भरूच में कांग्रेस के अहमद पटेल ने कभी हैट्रिक जमाई थी, वे 84 में हारे तो कांग्रेस यहां कभी दोबारा जीत ही नहीं पाई। यहां त्रिकोणीय संघर्ष रहता है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 3 और कांग्रेस व भारतीय ट्राइबल पार्टी को 2-2 सीटों पर जीत मिली है। भाजपा ने सांसद मनसुख वसावा को फिर प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस छोटू भाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के सहारे जगह बनाने का प्रयास कर रही थी मगर नाकाम रही। नर्मदा से सूरत वाले आदिवासी बैल्ट में छोटू वसावा बड़ी ताकत हैं। उनके 4 लाख वोट हैं और अहमद पटेल को राज्यसभा भेजने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका रही है। सीट पर समझौता नहीं हुआ क्योंकि कांग्रेस ने यहां से मुस्लिम चेहरा उतारने के लिए शेरखान पठान को टिकट दे दिया। इसलिए अब यहां त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन गई है।
मुद्दे जो असरदार रहेंगे यहां
यहां राष्ट्रीय मुद्दों की चर्चाएं हैं। पर वे मोदी के चेहरे से ज्यादा असरदार नहीं हैं। नोटबंदी और जीएसटी का विरोध तो विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए वोट में बदल चुका है। भरूच में नहरी पानी से आज भी सिर्फ 25% क्षेत्र ही कवर हो पाता है। ऐसे में सिंचाई का पानी बड़ा मुद्दा है। बारडोली के आदिवासी क्षेत्रों में मेडिकल सुविधाओं का स्तर बहुत नीचे है।
जातीय समीकरण क्या कहते हैं
सूरत, नवसारी और वलसाड़ में राजस्थानी, मराठी और यूपी-बिहार के लोग बहुतायत में हैं। ऐसे में जाति फैक्टर प्रभावी नहीं दिखता। हालांकि, अन्य सीटों पर पाटीदार, कोली और वसावा निर्णायक हैं। पाटीदार थोड़े भाजपा तो थोड़े कांग्रेस की ओर दिखते हैं।कोली पटेलों को चूंकि कांग्रेस ने टिकट में मौका दिया है, ऐसे में वे उसकी ओर जा सकते हैं। वसावा दलित हैं, उन्हें भाजपा के साथ माना जाता है।
गठबंधन की स्थिति
कांग्रेस का संगठन यहां कमजोर दिखता है। ऐसे में छोटू वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी से भी उसका गठबंधन नहीं हो पाया।
2014 की स्थिति : गुजरात में सभी 26 सीटें भाजपा जीती थी।